PATNA: बिहार सरकार ने 17सालों बाद एक आईएएस अफसर के खिलाफ अभियोजन चलाने की स्वीकृति दी है। मामला 2004 का है, फर्जी तरीके से आर्म्स लाइसेंस देने के मामले में सरकार ने सहरसा के पूर्व जिलाधिकारी एवं वर्तमान में राज्यपाल के प्रधान सचिव आरएल चौंग्थू के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति का आदेश दिया है।
बता दें, इनके खिलाफ वर्ष 2005 में सहरसा के सदर थाने में मामला दर्ज किया गया था। पुलिस के अनुसंधान व पर्यवेक्षण में उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया था। लेकिन अपराध अनुसंधान विभाग ने वर्ष 2009 में न्यायालय से आदेश लेकर पूर्व जिलाधिकारी चौंग्थू पर फिर से अनुसंधान शुरू किया। अनुसंधान के क्रम में इनके खिलाफ न्यायालय से वारंट जारी किया गया था। हालांकि उसमें इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई थी। लेकिन जिस समय वे भागलपुर के प्रमंडलीय आयुक्त थे, उस समय सहरसा न्यायालय में हाजिर हुए थे। अब फिर से अभियोजन स्वीकृति का आदेश मिलने के बाद यह मामला गरमा गया है।
2004 में सहरसा के जिलाधिकारी रहने के दौरान आरएल चौंग्थू ने शस्त्र अनुज्ञप्ति नियमों की अनदेखी करते हुए दर्जनों गलत लोगों को शस्त्र अनुज्ञप्ति प्रदान कर दिया था। उसके बाद भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पत्रांक 11026/76 /2004 (आर्म्स) दिनांक 29 अक्टूबर, 2004 के आदेश के आलोक में सहरसा पुलिस हरकत में आई। प्रारंभिक जांच पड़ताल के बाद सदर थाने के पूर्व थानाध्यक्ष अनिल कुमार यादवेन्दु ने फर्जी नाम पता वाले सात आरोपितों के खिलाफ अपने बयान पर नामजद प्राथमिकी संख्या 112/ 2005 दर्ज की थी। उसमें ओमप्रकाश तिवारी एवं उनकी पत्नी दुर्गावती देवी, हरिओम कुमार, अभिषेक त्रिपाठी, उदयशंकर तिवारी, राजेश कुमार एवं मधुप कुमार सिंह को अभियुक्त बनाया गया था। अनुसंधान के बाद नौ जुलाई 2005 को पुलिस ने ओमप्रकाश तिवारी के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र समर्पित किया था। दूसरा आरोप पत्र 13 अप्रैल 2006 को 14 आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में दायर किया गया था। उसमें जिलाधिकारी चौंग्थू एवं अभिषेक त्रिपाठी को दोषमुक्त करार दिया गया था। आरोप पत्र समर्पित होने के बाद न्यायालय ने नौ जुलाई 2014 को नामजद आरोपित समेत आठ अन्य आरोपियों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लेकर मामले का विचारण शुरू किया था।
अनुसंधान के क्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी आरएल चौंग्थू को एक बार क्लीन चिट दे दी गई थी। लेकिन अपराध अनुसंधान विभाग, पटना के अपर पुलिस महानिदेशक द्वारा कांड की समीक्षा किए जाने के बाद इस मामले में 19 मई, 2009 को न्यायालय से आदेश प्राप्त कर चौंग्थू एवं अभिषेक त्रिपाठी नामक आरोपित के खिलाफ फिर से अनुसंधान शुरू किया गया था। साक्ष्य एकत्रित करने के बाद वरीय पुलिस पदाधिकारी के निर्देश पर मामले के अनुसंधानकर्ता पूर्व मुख्यालय डीएसपी अरविंद कुमार ने न्यायालय में गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आवेदन दिया, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। उस समय के न्यायिक दंडाधिकारी राजेंद्र चौबे द्वारा गिरफ्तारी का वारंट जारी करने की अनुमति दे दी गई थी। लेकिन तब उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई थी।